बच्चों के जीवन के प्रथम 06 वर्ष अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि उनके 85% मष्तिष्क का विकास इसी समय हो जाता है | अतः बच्चों के जीवन की इस अवधि में बच्चों की गुणवत्तापरक देखभाल करना आवश्यक हो जाता है | इस पोस्ट में आप जानेंगे कि शिक्षा में ECCE का पूरा नाम ( ECCE full form ) क्या है और शिक्षा में ई०सी०सी०ई० की आवश्यकता एवं महत्त्व क्या है |
ECCE full form in English and Hindi
Early Childhood Care and Education – प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा या गुणवत्तापूर्ण देखभाल और शाला पूर्व शिक्षा
अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन की आवश्यकता एवं महत्त्व
प्रारम्भिक बाल्यावस्था को जन्म से आठ वर्ष की आयु के रूप में पारिभाषित किया गया है | अतः इस अवधि में प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (Ecce) की अति आवश्यकता है | 03 वर्ष से कम आयु के बच्चों की वृद्धि, बौद्धिक एवं सर्वांगीण विकास के लिए शुद्ध पौष्टिक खाना, स्वच्छ एवं जोखिम रहित वातावरण, प्यार एवं आदर और बड़े-बुजुर्गों के साथ बातचीत जरूरी है |
बच्चे के मस्तिष्क का विकास 6 वर्ष की आयु से पूर्व ही हो जाता है | बच्चे का विकास न केवल बच्चे के पोषण और स्वास्थ्य से प्रभावित होता है , बल्कि सामाजिक अनुभवों एवं वातावरण का प्रभाव इस पर होता है |
बच्चों के प्रारम्भिक अनुभव बहुत ही मूल्यवान होते है, क्योंकि इन्हीं अनुभवों से उनके विचार, व्यवहार, संवेगों और स्मृतियों का निर्माण होता है | सभी बच्चे शारीरिक, बौद्धिक, भाषा, सामाजिक एवं भावनात्मक तथा रचनात्मक गुणों में भिन्न होते हैं | इसलिए बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु इन सभी विकास क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है |
03-06 वर्ष की आयु के बच्चों के विकास के लिए उपरोक्त कारकों के अतिरिक्त गुणवत्ता पूर्ण शाला पूर्व शिक्षा (ईसीसीई) भी आवश्यक है | इस आयुवर्ग के बच्चों को दिए गए गुणवत्तापूर्ण ई.सी.सी.ई. का प्रभाव दीर्घकालीन होता है |
शिक्षा का अधिकार अधिनियम – 2009 के परिप्रेक्ष्य में ECCE
RTE – 2009 में 03-06 आयु वर्ग के बच्चों को प्राथमिक विद्यालय के तैयार करने हेतु निःशुल्क शाला पूर्व शिक्षा प्रदान करने का उल्लेख किया गया | इसी क्रम में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ( MWCD ) द्वारा राष्ट्रीय ECCE नीति 2013 एवं राष्ट्रीय ECCE पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क 2014 का निर्माण किया गया | जिसमें गुणवत्तापूर्ण शाळा पूर्व शिक्षा के संचालन हेतु दिशानिर्देश दिए गए हैं |
राष्ट्रीय शिक्षा नीति ( NEP )- 2020 में ECCE
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा प्रस्तावित नई 5+3+3+4 शिक्षा प्रणाली में, 3 साल की उम्र से प्रारम्भिक बचपन देखभाल शिक्षा (ईसीसीई) का एक मजबूत आधार शामिल है | जिसका उद्देश्य बेहतर समग्र शिक्षा , विकास और कल्याण को बढ़ावा देना है |
नयी शिक्षा नीति में कहा गया है कि 5 वर्षों की आधारभूत शिक्षा होनी चाहिए, इसमें 3 वर्ष प्रारम्भिक शिक्षा एवं 2 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा शामिल हो | 3 वर्ष की प्रारम्भिक शिक्षा आंगनबाड़ी केन्द्रों, प्री-स्कूल एवं बालवाटिका की व्यवस्था प्रस्तावित है | इसके पश्चात 2 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालयों में पूरी की जायेगी | इस प्रकार ईसीसीई की अवधि जन्म से 8 वर्ष की उम्र तक निर्धारित की गई है |
इन 5 ग्रेडों में सीखने में एकरूपता एवं निरंतरता बनाए रखने के लिए इन 5 कक्षाओं में पाठ्यक्रम का एकीकरण करना आवश्यक होना चाहिए | ईसीसीई में बच्चों को एक संतुलित खेल एवं अतिविधि आधारित पाठ्यक्रम के माध्यम से सिखाया और पढ़ाया जाता है | इस पद्धति को कक्षा 1 एवं 2 में बढ़ाया जाना चाहिए |
उत्तर प्रदेश में ECCE कार्यक्रम की स्थिति
वर्ष 2013 में उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय ई०सी०सी०ई० नीति एवं पाठ्यक्रम फ्रेमवर्क में दिए गए दिशानिर्देशों को अपनाते हुए ,बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग ( ICDS ) के अंतर्गत आंगनवाड़ी केन्द्र में 03-06 आयुवर्ग के बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शाला पूर्व शिक्षा के संचालन हेतु , राज्य ई०सी०सी०ई० पाठ्यक्रम की रचना की गयी |
राज्य सरकार द्वारा समग्र शिक्षा फ्रेमवर्क एवं नई शिक्षा नीति मसौदा 2019 के साथ समन्वय रखते हुए इसमें कुछ संशोधन भी किया गया | इसी के साथ राज्य सरकार द्वारा नए राज्य ECCE पाठ्यक्रम एवं NCERT द्वारा निर्धारित कक्षा 1 के अधिगम उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए सम्बंधित शिक्षण सामग्री तैयार की गई |
ई०सी०सी०ई० पाठ्यक्रम एवं शिक्षण के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु राज्य स्तर पर स्टेट रिसोर्स ग्रुप एवं जनपद स्तर पर डिस्ट्रिक्ट लेवल ट्रेनर्स का गठन किया गया | आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों के सहयोग से बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आयु एवं विकास उपयुक्त गतिविधियों का संचालन किया जाना प्रस्तावित है | इसके लिए प्रदेश में कार्यरत आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों का प्रशिक्षण कराया गया |
यूनिसेफ ने अपने तकनीकी सहयोगी विक्रमशिला के साथ मिलकर स्कूल की तैयारी की व्यापक अवधारणा को ध्यान में रखते हुए स्कूल रेडीनेस – विद्यालय पूर्व तैयारी नामक एक कार्यक्रम तैयार किया है | जिसका क्रियान्वयन भी शुरू किया जा चुका है | इसके अंतर्गत बाल विकास के क्षेत्र यथा शारीरिक विकास, बौद्धिक विकास, भाषा विकास, सामाजिक एवं भावनात्मक विकास तथा रचनात्मक विकास पर कार्य किया जाएगा |
राज्य ई०सी०सी०ई० पाठ्यक्रम के अनुसार बाल विकास के क्षेत्र
बच्चों में विकास के 05 क्षेत्र होते हैं | जो निम्न हैं –
- शारीरिक विकास
- बौद्धिक विकास
- भाषा का विकास
- सामजिक एवं भावनात्मक विकास
- रचनात्मक विकास
शारीरिक विकास
बड़ी एवं छोटी मांसपेशियों का विकास शारीरिक विकास का मुख्य लक्षण है | बड़ी मांसपेशियों के विकास में चलने, दौड़ने, कूदने, फेंकने, ऊँचा उछलने आदि की क्षमता दिखाई देती है | पकड़ना, लिखना, उठाना, रखना आदि छोटी मांसपेशियों के विकास के लक्षण हैं |
शारीरिक विकास उपयुक्त गतिविधियाँ – टनल ( सुरंग ) खेल,
बौद्धिक विकास
इसके अंतर्गत – समस्या सुलझा पाना, निरीक्षण और विचार करके चीजों के गुणों को जाना पाना, स्मरण शक्ति बढ़ना, वर्गीकरण कर पाना और घटनाओं को क्रम से सजा पाना आदि विकास के लक्षण आते हैं |
बौद्धिक विकास उपयुक्त गतिविधियाँ – रंग की अवधारणा, आकार की अवधारणा, संख्या पूर्व अवधारणायें | इसके अतिरिक्त प्राकृतिक, सामाजिक और भौतिक वातावरण की अवधारणा सम्मिलित है | संख्या पुर्व अवधारणाओं में मोटा-पतला, छोटा-बड़ा, लम्बा-छोटा, हल्का-भारी आदि आते हैं |
भाषा का विकास
विकास के इस क्षेत्र में बच्चों में सुनने, समझने और समझकर प्रतिक्रिया देने की क्षमता दिखाई देती है | शब्दों की पहली ध्वनि को पहचान पाना, लिखे हुए अक्षर पर सही रूप से कलम चला पाना आदि भाषा विकास के लक्षण हैं |
भाषा विकास की आवश्यक गतिविधियाँ – बच्चों से उनके परिवेश के बारे में बातचीत करना, कहानी सुनाना, अक्षरों की पहचान कराना, ध्वनि जागरूकता आदि |
सामाजिक एवं भावनात्मक विकास
सामजिक एवं भावनात्मक विकास का अर्थ है समाज में अर्थात घर, केंद्र और समुदाय में सामंजस्य बनाकर एवं अपनी भावनाओं पर उचित नियंत्रण रखने की क्षमता होना |
इसके अंतर्गत बच्चों द्वारा नियम एवं दिनचर्या का पालन करना, सीखने की उत्सुकता, नई चीजों को समझने एवं प्रयोग करने की इच्छा, अपनी जरूरतों को बोल पाना, ध्यानपूर्वक सुनने की क्षमता, स्वयं कार्य कर पाना, बिना घबराहट के विद्यालय में रह पाना, और प्रश्न पूछना आदि शामिल है |
रचनात्मक विकास
बच्चों में रचनात्मक विकास के लक्षण दिखाई तब देते हैं जब वे अपनी कल्पना और अनुभव से किसी भी नए चीज या वाक्य की रचना करते हैं |
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