Solution for SCERT UP Board textbook कृषि विज्ञान कक्षा 8 पाठ 7 सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास solution pdf. If you have query regarding Class 8 Krishi Vigyan Agriculture chapter 7 , please drop a comment below.
सिंचाई की विधियाँ तथा जल निकास
Exercise ( अभ्यास )
प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर पर सही (✔) का निशान लगाइए –
i)सरसों की सिंचाई किस विधि से की जाती है-
क) नाली विधि
ख) थाला विधि (✔)
ग) क्यारी विधि
घ) जल-वन विधि
ii) आलू की फसल की सिंचाई किस विधि से की जाती है-
क) क्यारी विधि।
ख) छिड़काव विधि
ग) थाला विधि।
घ) कूंड विधि (✔)
iii) ऊँची-नीची भूमि की सिंचाई किस विधि से करते हैं-
क) क्यारी विधि
ख) थाला विधि
ग) छिड़काव विधि (✔)
घ) कँड़ विधि
iii) खेत में जल भराव से मृदा ताप-
क) घटता है (✔)
ख) बढ़ता है
ग) स्थिर रहता है
घ) उपरोक्त में कोई नहीं
प्रश्न 2.रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
i) क्यारी विधि सिंचाई की उत्तम विधि है। : क्यारी
ii) नमी की कमी के कारण अंकुरण अच्छा नहीं होता। : नमी
iii) कूड़ विधि से आलू के खेत की सिंचाई की जाती है। : कूड़
iv) ड्रिप विधि में अधिक धन तथा कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। : ड्रिप
प्रश्न 3.निम्नलिखित कथनों में सही के सामने (✔) तथा गलत के सामने (✘) का निशान लगाए –
i) प्रवाह विधि से आलू की सिंचाई की जाती है। (X)
ii) प्रवाह विधि में कम श्रम की आवश्यकता होती है। (✓)
iii) क्यारी विधि से गेहूं की सिंचाई नहीं की जाती। (X)
iv) कॅड़ विधि से गन्ने की सिंचाई की जाती है। (X) v)थाला विधि से पपीते के बाग की सिंचाई की जाती है।(✓)
प्रश्न 4 : स्तम्भ ‘क’ को स्तम्भ ‘ख’ से सुमेल कीजिए।
उत्तर :
स्तम्भ ‘क’ स्तम्भ ‘ ख ‘
i) गेहूँ की सिंचाई क्यारी विधि
ii) धान की सिंचाई प्रवाह या जलप्लवन विधि
iii) जल निकास विधि भूमिगत नाली
iv) जल भराव भूमि दलदली
प्रश्न 5: सिंचाई देर से करने पर फसलों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर : सिंचाई देर से करने पर फसलों का समुचित विकास नहीं हो पाता, जिससे उत्पादन पूरा नहीं मिल पाता।
प्रश्न 6: जल भराव से पौधों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर : जल भराव के कारण मृदा वायु संचार में कमी हो जाती है और मिट्टी में हानिकारक लवण के एकत्रित हो जाने के कारण फसल पीली पड़ जाती है और नष्ट हो जाती है।
प्रश्न 7: छिड़काव विधि क्या है ? भारत में यह विधि अभी तक अधिक लोकप्रिय क्यों नहीं हो सकी है ?
उत्तर : इस विधि में पानी पाइपों के द्वारा खेत तक ले जाया जाता है और स्वचालित यंत्रों द्वारा फसलों पर छिड़काव करके सिंचाई की जाती है।
श्रम तथा धन की अपेक्षाकृत अधिक और कुशल श्रम की आवश्यकता पड़ने के कारण तथा भारत अत्यधिक उन्नतशील कृषकों के न होने कारण अभी तक यह विधि लोकप्रिय नहीं हो पाई है ।
प्रश्न 8: थाला विधि से सिंचाई के दो लाभ लिखिए।
उत्तर : i) इस विधि से सिंचाई करने पर जल की बचत होती है।
ii) पानी सीधे जड़ों के क्षेत्र में उपलब्ध होता है जिससे पौधे उनका समुचित उपयोग कर लेते हैं।
प्रश्न 9: जल जमाव से होने वाली दो हानियाँ बनाइए।
उत्तर : i) मृदा वायु संचार में कमी
ii) मिट्टी में हानिकारक लवणों का एकत्रित होना
प्रश्न 10: उचित जल निकास का मिट्टी पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर : उचित जल निकास का मिट्टी पर प्रभाव –
i) भूमि शीघ्र ही कृषि योग्य हो जाती है ।
ii) जल निकास की उचित व्यवस्था होने पर मिट्टी का ताप संतुलित रहता है जिसके कारण बीजों का अंकुरण शीघ्र तथा अच्छा होता है और पौधों की वृद्धि अच्छी होती है।
प्रश्न 11: थाला विधि की सिंचाई का चित्र बनाइए।
उत्तर : इसमें प्राय: छोटे-छोटे वृत्ताकार समतल थाले वृक्षों के चारों तरफ बनाये जाते हैं। आमतौर पर यह विधि वृक्षों की सिंचाई के लिए अपनायी जाती है। इस विधि से पूरे क्षेत्र की सिंचाई नहीं की जाती है जिससे पानी की बचत होती है।
चित्र स्वयं बनाएं।
प्रश्न 12: आवश्यकता से अधिक सिचाई करने से फसल पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर : आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से फसल पीली पड़ कर नष्ट होने लगती है। जड़ों द्वारा जल का अवशोषण कम हो जाता है और पौधे मुरझाने लगते हैं।
प्रश्न 13: सिंचाई का अर्थ समझाइए सिंचाई की कितनी विधियाँ होती है? किन्ही दो विधियों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर : फसलों एवं बागों में सफल उत्पादन के लिए सिंचाई की सुविधा अत्यन्त आवश्यक होती है। इसकी हमारे देश में निम्नलिखित विधियां हैं –
i) जल-प्लवान या प्रवाह विधि
ii) क्यारी विधि
iii) कूँड़ विधि
iv) थाला विधि
v) बरहा विधि
vi) छिड़काव विधि
vii) ड्रिप (टपक) विधि
i) जल-प्लवान या प्रवाह विधि – यह विधि खेत में पलेवा करने या धान में सिंचाई करने हेतु प्रयोग में लायी जाती है।
प्रवाह विधि के गुण – इस विधि से सिंचाई करने में आसानी रहती है तथा समय की बचत होती है।
प्रवाह विधि के दोष – खेत में जल का वितरण असमान होता है तथा पानी अधिक लगता है ।
ii) थाला विधि – इसमें प्राय: छोटे-छोटे वृत्ताकार समतल थाले वृक्षों के चारों तरफ बनाये जाते हैं। आमतौर पर यह विधि वृक्षों की सिंचाई के लिए अपनायी जाती है। इस विधि से पूरे क्षेत्र की सिंचाई नहीं की जाती है जिससे पानी की बचत होती है।
प्रश्न 14: प्रवाह तथा ड्रिप विधि के गुण और दोष लिखिए।
उत्तर : प्रवाह विधि के गुण –
i) इस विधि से सिंचाई करने में आसानी रहती है ।
ii) सिंचाई करने में समय की बचत होती है।
प्रवाह विधि के दोष –
i) पानी अधिक लगता है।
ii) इस विधि द्वारा केवल समतल खेतों की ही सिंचाई की जा सकती है।
ड्रिप विधि के गुण –
i) पानी की हानि न्यूनतम होती है।
ii) कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए सिंचाई की उपयुक्त विधि है।
ड्रिप विधि के दोष –
i) प्रारंभिक लागत अधिक होती है।
ii) स्वच्छ जल की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 15: फलदार वृक्षों के लिए आप सिंचाई की किस विधि को अपनायेंगे और क्यों ? वर्णन कीजिए।
उत्तर : फलदार वृक्षों की सिंचाई के लिए थाला विधि अपनाई जाती है। इस विधि से सिंचाई करने पर जल की बचत होती है और पौधे पानी का समुचित उपयोग करते हैं, क्योंकि पानी जड़ों के पास थाला में दिया जाता है।
प्रश्न 16: जल निकास का अर्थ समझाइए। जल जमाव से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर : साधारण रूप से किसी भी स्थान से अतिरिक्त पानी निकालकर बहा देने को जल निकास कहते हैं किन्तु कृषि विज्ञान में इसका विशेष अर्थ है ।फसलोत्पादन हेतु खेत से अतिरिक्त जल को निकाल देते हैं जिससे मृदा की उचित दशा बनी रहे ।
जल जमाव से होने वाली हानियां –
i) मृदा वायु संचार में कमी
ii) मिट्टी में हानिकारक लवणों का एकत्रित होना
iii) मृदा ताप में कमी
iv) भूमि का दलदली हो जाना
v) लाभदायक मृदा जीवाणुओं के कार्य में बाधा
प्रश्न17: मृदा से जल निकास कितने प्रकार से किया जाता है? जल निकास की किसी एक विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर : मृदा से जल निकास की मुख्यतः दो विधियां हैं –
i) सतही खुली नालियों द्वारा
i) भूमिगत बंद नालियों द्वारा
भूमिगत नालियों से जल निकलने की तीन विधियां हैं –
a) पोल जल निकास नालियां
b) स्टोन जल निकास नालियां
c) टाइल जल निकास नालियां
i) सतही खुली नालियों द्वारा – खुली निकास नालियों में खेत सतह से 30 सेमी गहरी तथा लगभग 75 सेमी ऊँची और सीधी नालियाँ बनाई जाती । हैं। इन्हें आगे बड़ी नाली में मिलाया जाता है। बड़ी नानी को प्राकृतिक नाले या नदी में डाला जाता है।
खुली नालियों के गुण –
i)इस विधि से अतिरिक्त जल को आसानी से खेत के बाहर निकाला जा सकता है।
ii) इसकी कमियों को आसानी से दूर किया जा सकता है।
iii)इसमें अधिक ढाल की जरूरत नहीं होती है।
खुली नालियों के दोष –
i) नाली के खुला रहने पर भूमि कुछ कम हो जाती है।
ii) खेत की जुताई एवं निराई-गुड़ाई में बाधा होती है।
iii) नाली में जमी मिट्टी (गाद) को हमेशा निकालना पड़ता है।
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