भक्ति-नीति माधुरी (कविता) : कक्षा 5 हिन्दी पाठ 14

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भक्ति-नीति माधुरी

मीराबाई

बसौ मोरे नैनन में नन्दलाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल, अरुन तिलक दिये भाल।
मोहनि मूरति साँवरी सूरति, नैना बने बिसाल।
अधर-सुधा-रस मुरली राजत, उर वैजन्ती माल।।
छुंद्र घण्टिका कटि-तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल ।।

भावार्थ : हे कृष्ण तुम सदैव तुम मेरे नयनों में निवास करो । हे प्रभु आपके माथे पर मोर का मुकुट एवं कानों में मछली के आकार का कुंडल सुशोभित है, माथे पर लाल रंग का तिलक लगा हुआ है । हे प्रभु आपका रूप अत्यंत मोहक है । सांवली सूरत पर बड़े-बड़े नेत्र आपके सौंदर्य को और बढ़ा रहे है । हे कृष्ण आपके होंठों पर अमृत रस बरसाने वाली मुरली सुशोभित है और गले में बैजंती माला अत्यंत सुंदर लग रही है । प्रभु श्री कृष्ण की कमर में छोटी-छोटी घंटियाँ और पैरों में सरस और मधुर ध्वनि उत्पन्न करने वाले घुंघरू सुशोभित है । मीरा बाई कहती है कि मेरे प्रभु संतों को सुख देने वाले और अपने भक्तों से प्रेम करने वाले है |

तुलसीदास

का बरषा जब कृषी सुखाने।
समय चूकि पुनि का पछिताने ।।
पर उपदेस कुसल बहुतेरे।
जे आचरहिं ते नर न घनेरे ।।
कादर मन कहुँ एक अधारा।
दैव-दैव आलसी पुकारा।।
हित अनहित पसु पच्छिउ जाना।
मानुष तनु गुन ग्यान-निधाना ।।
जहाँ सुमति तहँ सम्पति नाना।
जहाँ कुमति तहँ विपति निधाना ।।
परहित सरिस धरम नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।।

भावार्थ : जिस प्रकार खेती सूख जाए तो वर्षा से कोई लाभ नहीं होता है, उसी प्रकार समय व्यतीत हो जाने के बाद किसी कार्य के न कर सकने पर पछताने से कोई लाभ नहीं होता। दूसरों को उपदेश देने में तो बहुत लोग कुशल होते हैं, पर ऐसे व्यक्ति बहुत कम हैं जो स्वयं के द्वारा दिए जाने वाले उपदेश से पहले उसमें निहित बातों को स्वयं पर लागू करते हैं । कायर, कमजोर या निकम्मा व्यक्ति केवल ‘भाग्य-भाग्य’ रटता रहता है और वह भाग्य को ही जीवन का आधार मानता है।

अपनी भलाई और बुराई पशु-पक्षी भी जानते हैं, जो अबोध हैं | जबकि मानव शरीर धारण करने वाला प्राणी तो गुण और ज्ञान की खान है, उसे और ध्यान देना चाहिए। जहाँ सुमति अर्थात अच्छा आचरण है, वहाँ समृद्धि ऐश्वर्य, सुख का भंडार होता है; परन्तु जहाँ कुमति अर्थात गलत आचरण है, वहाँ विपत्ति और संकट का खजाना होता है। तुलसीदास जी कहते हैं कि परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है |

रसखान

धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैजनी बाजति पीरी कछोटी।।
वा छबि को रसखानि बिलोकत, वारत काम कला निज कोटी।
काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी ।।

भावार्थ : रसखान जी कहते हैं कि बालकृष्ण धूल में सने हुए अत्यंत मनोहारी लग रहे हैं और इनके सिर पर सुन्दर चोटी भी शोभायमान है। ये पीली लंगोटी और पैर में पैजनिया पहने हुए जो बज रही हैं, आँगन में खेलते फिर रहे हैं। रसखान अपने करोड़ों कार्य छोड़कर कृष्ण की छवि निहारते हैं। रसखान जी कहते हैं कि वह कौआ बहुत भाग्यशाली है, जो भगवान बाल कृष्ण के हाथ से रोटी का टुकड़ा छीनकर ले उड़ा।

या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर के तजि डारौं ।।
आठहूँ सिद्धि नवौं निधि के सुख, नन्‍द की गाय चराय बिसारौं ।।
नैनन ते रसखानि जबै; ब्रज के बन-बाग तड़ाग निहारों।
कोटिक ये कलधौत के धाम, करील की कुंजन ऊपर वारीं।।

भावार्थ – रसखान जी कहते हैं कि बालकृष्ण के लाठी और कंबल वाले रूप पर तीनों लोकों के राज्य और राजसुख सबकुछ न्यौछावर है। रसखान जी कहते हैं कि बाबा नंद की गाय चराने से जो सुख प्राप्त होगा, उसके आगे आठों सिद्धियों और नौ निधियों से प्राप्त सुख भी कुछ नहीं। रसखान जी जब भी ब्रज के वनों, बागों और तालाबों को निहारते हैं तो कहते हैं कि इन कीकर के बागों बगीचों की शोभा के ऊपर सोने के करोड़ों महलों को न्यौछावर कर दूँ।

Exercise ( अभ्यास )

प्रश्न-1. बोध प्रश्न : उत्तर लिखिए –

(क) मीरा ने कृष्ण के किन गुणों का बखान किया है ?

उत्तर- मीरा ने कृष्ण की मनमोहक सुन्दरता का वर्णन किया है |

(ख) तुलसीदास ने सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ा अधर्म किसे बताया है ?

उत्तर- तुलसीदास ने बताया है कि दूसरों की सहायता करना सबसे बड़ा धर्म और दूसरों को पीड़ा पहुँचाना सबसे बड़ा अधर्म है |

(ग) रसखान ने तीनों लोकों का राज्य किस बात पर न्यौछावर करने को कहा है?

उत्तर- रसखान जी ने कृष्ण के कम्बल और लाठी पर तीनों लोकों का राज्य न्यौछावर करने को कहा है |

(घ) रसखान ने कौवे को भाग्यशाली क्यों कहा है ?

उत्तर- रसखान जी कहते हैं कि कौआ बड़ा भाग्यशाली है कि वह हरि अर्थात श्रीकृष्ण के हाथ से माखन रोटी छीनकर ले गया |

(ड) रसखान ने कृष्ण की कैसी छवि का वर्णन किया है ?

उत्तर- रसखान ने कृष्ण की बाल छवि का मनमोहक वर्णन किया है |

प्रश्न-2. नीचे लिखी काव्य पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –

(क) ‘काग के भाग बड़े सजनी, हरि-हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी ।’

भावार्थ : कौआ बड़ा भाग्यशाली है कि वह हरि अर्थात कृष्ण के हाथ से माखन रोटी छीनकर ले गया |

(ख) ‘कोटिक ये कलधौत के धाम, करील की कुंजन ऊपर वारीं।’

भावार्थ : रसखान जी कहते हैं कि कृष्ण जिन कांटेदार झाड़ियों के बगीचों में खेलते थे उनपर सोने के करोड़ों महल न्यौछावर हैं |

(ग) समय चूकि पुनि का पछिताने।

भावार्थ : तुलसीदास जी कहते हैं कि किसी कार्य के करने का समय बीत जाने पर, पछताने से कुछ नहीं मिलता |

(घ) जहाँ कुमति तहँ विपति निधाना।

भावार्थ : जहाँ गलत विचार हो, वहाँ विपत्तियों का अम्बार होता है |

(ड) मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल ।

भावार्थ : मीरा बाई कहती है कि मेरे प्रभु संतों को सुख देने वाले और अपने भक्तों से प्रेम करने वाले है |

प्रश्न-3. सोच-विचार : बताइए -आप ऐसे लोगों को कौन-सा दोहा सुनाएंगे –

(1) जो अपना काम समय पर नहीं करते और बाद में पछताते हैं।

का बरषा जब कृषी सुखाने।
समय चूकि पुनि का पछिताने ।।

(2) जो आलसी हैं।

कादर मन कहुँ एक अधारा।
दैव-दैव आलसी पुकारा।।

(3) जो स्वयं नहीं करते, किंतु दूसरों को उपदेश देते रहते हैं।

पर उपदेस कुसल बहुतेरे।
जे आचरहिं ते नर न घनेरे ।।

(4) जो दूसरों को कष्ट पहुँचाते रहते हैं।

परहित सरिस धरम नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई ।।

प्रश्न-4.भाषा के रंग –

(क) ‘बरषा’ तद्‌भव शब्द है जिसका तत्सम रूप ‘वर्षा’ है। इसी प्रकार नीचे लिखे तद्भव शब्दों के तत्सम रूप को कोष्ठक से छाँटकर लिखिए –

(कुशल, कायर, धर्म, भाग्य, श्याम, मक्खन, आधार, धूलि)
तद्भवतत्समतद्भवतत्सम
कादरकायरस्यामश्याम
धरम धर्मअधाराआधार
भागभाग्यमाखनमक्खन
धूरिधूलिकुसलकुशल

प्रश्न-5. अब करने की बारी-

(क) पता करें — कृष्ण के बाल रूप का वर्णन और किन-किन कवियों ने किया है।
(ख) पाठ में आए सवैयों को कंठस्थ करें और बालसभा में सुनाएँ।
(ग) अपने शिक्षक /माता-पिता के मोबाइल फोन पर इन कवियों की रचनाओं को सुनें तथा वैसे ही गाकर प्रस्तुत करने का अभ्यास करें।

उत्तर- छात्र स्वयं करें |

प्रश्न-6. मेरे दो प्रश्न : पाठ के आधार पर दो सवाल बनाइए –

  1. मीराबाई की रचनाओं में किसके प्रति प्रेमभाव का वर्णन है ?
  2. तुलसीदास का जन्म कहाँ हुआ था ?

प्रश्न-7. इस पाठ से –
(क) :मैंने; सीखा – स्वयं लिखें |
(ख) मैं करूँगी/ करूँगा -स्वयं लिखें |

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