नीति के दोहे ( कबीर, रहीम )

Solution for SCERT UP board book मंजरी अक्षरा कक्षा 6 पाठ 4 नीति के दोहे solution pdf. If you have query regarding Class 6 Manjari Akshara Chapter 4 Neeti ke Dohe Hindi, please drop a comment below.

नीति के दोहे

कबीरदास

दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय।
मुई खाल की स्वॉस सो, सार भसम ह्वै-जाय।।

भावार्थ : कबीरदास जी कहत हैं कि कभी भी कमजोर व्यक्ति को नहीं सताना चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्तियों की हाय बहुत बुरी होती है | यदि मृत शरीर की खाल से बनी धौंकनी से लोहा पिघल सकता है तो वह तो जीवित व्यक्ति की आह होगी |

मधुर बचन है औषधी, कटुक बचन है तीर।
स्रवन द्वार हवै संचरे, सालै सकल सरीर।।

भावार्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि मधुर वाणी एक प्रकार से औषधि का कार्य करती है , जबकि कड़वी बातें तीर के सामान लगती हैं और व्यक्ति ह्रदय से भी आहत होता है |

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपनो, मुझ-सा बुरा न कोय।।

भावार्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं दूसरों में बुराई खोजने निकला तो मुझे कोई बुरा आदमी नहीं मिल सका, लेकिन जब मैंने अपने अन्दर कमियों पर नजर डाली तो पाया कि मुझसे बुरा तो कोई है ही नहीं |

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय ॥

भावार्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि साधु का स्वभाव सूप जैसा होना चाहिए जो अच्छाई को स्वीकार करे और बुराई पर ध्यान न दे | जिस प्रकार एक सूप अच्छे अनाज को रखता है शेष गन्दगी को उड़ा देता है |

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय।।

भावार्थ : कबीरदास जी कहते हैं कि संसार के सभी कार्य समय पर ही होते हैं जैसे- माली कितना भी बृक्ष को पानी दे डाले लेकिन फल ऋतु आने पर ही बृक्ष में फल लगते हैं | इसलिए कार्य करते रहना चाहिए नतीजा अपने-आप समय पर दिखाई देगा |

रहीम

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाटनवारे को लगे, ज्यों मेहँदी को रंग।।

भावार्थ : रहीम जी कहते हैं कि वे मनुष्य धन्य हैं जो परोपकार में लगे रहते हैं, क्योंकि उन्हें भी परोपकार का फ़ल मिलता है , जिस प्रकार मेंहदी बांटने वालों के हाथ स्वयं लाल हो जाते हैं |

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुस चून।।

भावार्थ : रहीम जी कहते हैं कि पानी अनमोल है उसे बचा कर रखिए क्योंकि पानी बिना सब कुछ सूना हो जाएगा जैसे – पानी बिना मोती, मनुष्य और चूना निर्जीव हो जाते हैं |

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी अठिलैहें लोग सब, बाँटि न लैहें कोय।।

भावार्थ : रहीम जी कहते हैं कि अपने मन में चल रही परेशानियों को दूसरों से बताने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि आपकी परेशानियाँ हल करने के बजाय लोग हंसी ही उड़ायेंगे |

जो बड़ेन को लघु कहें, नहिं रहीम घटि जाँहि।
गिरधर मुरलीधर कहे, कछु दुःख मानत नाहिं।।

भावार्थ : रहीम जी कहते हैं कि अगर कोई योग्य व्यक्ति की बुराई करता है तो वह स्वयं अपनी हीनता प्रदर्शित करता है क्योंकि जो वास्तव में जो अच्छा है वह किसी के कहने मात्र से बुरा नहीं हो जाएगा | जिस प्रकार गिरधर को मुरलीधर कह देने से उनका महत्त्व कम नहीं हो जाता |

समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक।
चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।।

भावार्थ : रहीम जी कहते है कि जो समय के महत्त्व को नहीं समझता वह समय बीत जाने पर अपनी गलती के लिए जिन्दगी भर पछताता रहता है कि काश हमने समय रहते समय के महत्त्व को पहचाना होता तो यह दिन न देखना पड़ता |

नीति के दोहे Exercise ( अभ्यास )
कुछ करने को :

प्रश्न 1 : बाल अखबार में हर बार एक नीति परक वाक्य लिखिए और कक्षा में लगाइए।

उत्तर- छात्र स्वयं करें |

2- शिक्षक की मदद से कक्षा के सभी बच्चे दो भागों में बंट जाए | इनमें से एक भाग के बच्चे कबीर, दूसरे भाग के बच्चे रहीम के दोहे याद करने की जिम्मेदारी लें। बाल सभा में इन कवियों की रचनाओं पर आधारित “कवि दरबार” का आयोजन करें।

उत्तर- छात्र स्वयं करें |

3- रेडियो, टेलीविजन तथा इन्टरनेट के माध्यम से इन कवियों की रचना गायन का अभ्यास कीजिए।

उत्तर- छात्र स्वयं करें |

पाठ से :

प्रश्न 1 : नीचे कुछ वाक्य लिखे गये हैं। इनसे सम्बंधित दोहों को उसी क्रम में लिखिए-

मधुर वाणी औषधि का काम करती है तथा कठोर वाणी तीर की तरह मन को बेध देती है |

मधुर बचन है औषधी, कटुक बचन है तीर।
स्रवन द्वार हवै संचरे, सालै सकल सरीर।।

कोई भी कार्य समय पर ही होता है।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय।।

अपने दुख को कहीं उजागर नहीं करना चाहिए।

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी अठिलैहें लोग सब, बाँटि न लैहें कोय।।

परोपकार करने वाले लोग प्रशंसनीय होते हैं।

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाटनवारे को लगे, ज्यों मेहँदी को रंग।।

ड.दूसरे लोगों में बुराई देखना ठीक नहीं।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपनो, मुझ-सा बुरा न कोय।।

प्रश्न 2 : निम्नांकित पंक्तियों के अर्थ स्पष्ट कीजिए –

(क) स्रवन द्वार हवै संचरे, सालै सकल सरीर।

उत्तर- कबीरदास जी कहते हैं कि मधुर वाणी एक प्रकार से औषधि का कार्य करती है , जबकि कड़वी बातें तीर के सामान लगती हैं और व्यक्ति ह्रदय से भी आहत होता है |

(ख) पानी गये न ऊबरै, मोती मानुस चून।

उत्तर- रहीम जी कहते हैं कि पानी अनमोल है उसे बचा कर रखिए क्योंकि पानी बिना सब कुछ सूना हो जाएगा जैसे – पानी बिना मोती, मनुष्य और चूना निर्जीव हो जाते हैं |

(ग) बाटनवारे को लगे, ज्यों मेहँदी को रंग।

उत्तर- रहीम जी कहते हैं कि वे मनुष्य धन्य हैं जो परोपकार में लगे रहते हैं, क्योंकि उन्हें भी परोपकार का फ़ल मिलता है , जिस प्रकार मेंहदी बांटने वालों के हाथ स्वयं लाल हो जाते हैं |

(घ) जो दिल खोजा आपनो, मुझ-सा बुरा न कोय।

उत्तर- कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं दूसरों में बुराई खोजने निकला तो मुझे कोई बुरा आदमी नहीं मिल सका, लेकिन जब मैंने अपने अन्दर कमियों पर नजर डाली तो पाया कि मुझसे बुरा तो कोई है ही नहीं |

(ड) चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।

उत्तर- रहीम जी कहते है कि जो समय के महत्त्व को नहीं समझता वह समय बीत जाने पर अपनी गलती के लिए जिन्दगी भर पछताता रहता है कि काश हमने समय रहते समय के महत्त्व को पहचाना होता तो यह दिन न देखना पड़ता |

प्रश्न 3 : माली के द्वारा लगातार पेड़ों को सींचने पर भी फल क्‍यों नहीं आते हैं ?

उत्तर- माली द्वारा लगातार पेड़ों को ससींचने पर भी फल नहीं आते क्योंकि कोई भी कार्य समय से पहले नहीं होता, जल्दबाजी करना व्यर्थ है |

प्रश्न 4 : अपने मन की व्यथा को मन में ही क्‍यों रखना चाहिए ?

उत्तर- क्योंकि आपकी परेशानी सुनकर कोई मदद नहीं करेगा बल्कि लोग हंसी उड़ायेंगे |

भाषा की बात :

प्रश्न 1 : “स्रवन द्वार हवै संचरे, सालै सकल सरीर”- पंक्ति में “स” वर्ण की आवृत्ति कई बार होने से कविता की सुन्दरता बढ़ गयी है। जहाँ एक वर्ण की आवृत्ति बार-बार होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। अनुप्रास अलंकार के कुछ अन्य उदाहरण पुस्तक से दूँढ़कर लिखिए।

उत्तर- 1. समय लाभ सम लाभ नहिं, समय चूक सम चूक।

2. चतुरन चित रहिमन लगी, समय चूक की हूक।।

प्रश्न 2 : रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरै, मोती मानुस चून।।
उपर्युक्त दोहे में “पानी” शब्द के तीन अर्थ हैं- मोती के अर्थ में -. कान्ति, मनुष्य के अर्थ में. – स्वाभिमान, चूना के अर्थ में – जल | एक ही शब्द के कई अर्थ होने से यहाँ श्लेष अलंकार है। श्लेष अलंकार का एक और उदाहरण दीजिए।

उत्तर- चरण धरत चिंता करत, चितवत चारहु ओर। सुबरन को खोजत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर

व्याख्या : यहाँ सुबरन के तीन अर्थ हैं – कवि के लिए सुन्दर कविता, व्याभिचारी के लिए सुन्दर स्त्री और चोर के लिए सोना |

प्रश्न 3 : पाठ में आये निम्नलिखित तदभव शब्दों का तत्सम रूप लिखिए-

तदभव शब्दतत्सम शब्द
भसमभस्म
औषधीऔषधि
सुभायस्वभाव
सरीरशरीर
मानुसमनुष्य
सबदशब्द
बिथाब्यथा

प्रश्न 4 : कुछ ऐसे शब्द होते हैं जिनके अलग-अलग अर्थ होते हैं, जैसे- ‘तीर’ शब्द के अर्थ हैं ‘बाण’ और ‘नदी का किनारा’। निम्नलिखित शब्दों के दो-दो अर्थ लिखिए-

शब्दपहला अर्थदूसरा अर्थ
पटद्वारकपड़ा
दरदरवाजादरबार
करहाथटैक्स
जड़पौधे का भागमूर्ख
गोलीबन्दूक की गोलीदवा की गोली
सारंगहिरणशेर
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